बात हैं गये रविवार की
शाम ढले बैठे थे बाग़ में
किनारे की दूकान पर
आकर गाड़ी एक बड़ी रुकी
आदमी उससे उतरे दो
निकाल एक सीढ़ी
झट छत पर जा पहुंचे वो
हरकते कुछ संदिघ न थी
कौतुहल वश निगाह उन पर टिकी
सामने था उनके एक "इश्तिहार बोर्ड"
संभाला उन्होंने तब अपना समान
यकीन जानिये
पांच ही मिन्टो में ख़तम किया अपना काम
सामने था अब हमारे, ६*१० का नया इश्तिहार
दो दिन गये फिर निगाह फिर उस पर गई
देखा, जो था दाढ़ी बनाता आदमी
शरबत पी इठलाती लड़की बनी
दिखा उसे जब आज सुबह , चौक कर आँखें खुली
पाया आज फिर एक नया इश्तिहार
"यह जगह खाली हैं , आप दें अपना इश्तिहार" !!!
(सच्ची घटना पर आधारित )
--- अमित २०/१२/2009
1 comment:
इश्तिहार पर इश्तिहार.....
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