Friday, December 25, 2009

गलत-फ़हमी...

गलत तो नहीं था वो
और शायद मैं भी नहीं
या कहूँ कि कोई नहीं
गलत तो हालात थे
और उनका अंजाम
"गलत-फ़हमी"...
येँ कब आ गई
उन दोनों के बीच
और दिखाया अपना रंग
पता ही नहीं चला ...
जिस्म में जान से थे दोनों
और यों जुदा हुए
जैसे कभी मिले ही न हो दोनों ...
हालात ने इस कदर तोडा हम को
सोच सके हम कुछ और
ऐसा भी न छोड़ा हम को...
जिन्दगी के उस दोराहे पर
जुदा हुए हमारे रास्ते
दूर ... बहुत दूर
जब जिन्दगी आज मुझे ले आई
जाने क्यों "तेरा" ख्याल आया ...
--- अमित २६ /२/२००९

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा और गहन रचना!!


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यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

Rachna Singh said...

another good composition