देता है हर कोई
दुहाई, अपने हालातो की
अगर हालात हुए कुछ और होते
तो अपना ये मुकाम न होता
जहाँ आज गिनते हो तुम औरों को
वही कहीं अपना भी नाम होता
ऐसा नही के हम काबिल न थे
बस, बदले जमाने से वाकिफ नही थे
दावं - पेच इसके हमें समझ नही आते थे
और साथी हमारे आगे निकल जाते थे
सच्ची लगन मगर कहाँ छुप पाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह से हार ही जाती है
तुम रहो साथ मेरे ,
करो मेरा विश्वास
और कोई नही , ख़ुद बदलूँगा
मैं अपने हालात
मैं करता नही वादा
कि तारे मैं तोड़ कर लाऊँगा
साथ रहो तुम मेरे
आकाश तक तुम को ले जाऊं मैं ...
--- अमित ३०/०६/०८