श्रीमती जी, अभी कुछ दिन हुए
ससुराल छोड़ , हमारे साथ आई
एअरपोर्ट उन्हें लेने जा
हमने भी पत्नी भक्ति दिखाई
यहाँ आ उनको लगा
नई आज़ादी उन्होंने पाई
जो लगते थे कभी कट गए
वो "पर" वापस निकल आए
दो दिन आराम करवा
उनको नए शहर की सैर कराई
देख कर खूबसूरती शहर की
वो खूब ही ह्र्षाई,और हमसे बोली
अब आसानी से घर नही जाऊँगी
चाहे जैसे रखो,
चुप-चाप आप के साथ रह जाऊँगी
हम भी खुश थे ,
वैसे भी अभी कहाँ अपने "घर" जाना था
श्रीमती जी नित नई फरमाइश ना करे
बस अपना इतना ही चाहना था
श्री मानो के चाहने से क्या होता है
परचम तो श्री मतियों का लहरा होता है
इसका आभास हमे कल हुआ
जब श्री मति जी ने पास आ प्यार से कहा
अजी कल का क्या प्रोग्राम है
हमने भी जरा लाड दिखाया और कहा
आप जे ओ बोले , बन्दा तो आप का गुलाम है
उन्होंने तव फरमाया , ठीक है
पहले तो डिस्को चलेंगे और फ़िर
रात का खाना बाहर करेंगे
अभी तक तो हम ठीक थे
ये सुन जरा घबरा गए
कल को ऐसा क्या "ख़ास " है
ये सवाल कर, आफत में आ गए
इस परवो जरा गरमा गई और
शेरनी सी धाड़ कर सामने आ गई
शादी होते ही सब भूल गए
प्यार के शौक चार दिन में धुल गए
कल "वैलेंटाइन डे" है , वो भी पहला
हम साथ में मनायंगे ,
जहाँ दिल चहयेगा , वहाँ जायेंगे
आवाज़ के रुख से समय को हम भाप गए
हमतो मजाक कर रहे थे , कह बात ताल गए
समझ गए थे , "संत वैलेंटाइन" तो गए स्वर्ग सिधार
और हम श्री मानो को छोड़ गए ये खेर्चे का त्यौहार ...
---- अमित १४/०२/२००८
3 comments:
बढ़िया है ..अच्छी कविता हो गई..आपके पहले valentine पर बधाई...
bahut hi badhiya,wish u and ur wife enjoy the day.god bless u both.
good poem!!
wish both of u, all the best!
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