३१ दिसम्बर , दौडा आ रहा था
हर्षित तो हम भी थे
मगर कुछ को, कुछ जयादा ही हर्षा रहा था
मानो , इस बार पहली बार आ रहा था
प्लान थे, के रोज नए बन जाते थे
इस डिस्को नही , उस डिस्को जायेंगे
वो मयखाना अच्छा है,
जाम, अब तो वहीं छलकेंगे
खाने का क्या है, रोज ही तो खाते है
खाने का क्या है, रोज ही तो खाते है
ये ख़ुशी के जाम है
कहाँ रोज-रोज छलकाए जाते है
पलक झपकते ही ३१ दिसम्बर की शाम आई
पलक झपकते ही ३१ दिसम्बर की शाम आई
दिल की उमंगो ने ली एक मीठी अंगडाई
हमने भी सूट पहना, टाई लगाई
दोस्तों की मंडली भी सज- धज साथ में आई
दिल में उमेंगे ले हम डिस्को पहुंचे
देख के मंज़र वहाँ का,
ख़ुशी के "तारे जमीन पर" पहुचे
मयखाने का हाल और गज़ब था
वहाँ जा कोई "तिल" भी रखे
साहस ऐसा हम में किस ने दिया था
अपनी कलाई पर जब ध्यान गया
ग्यारह पर दस तव बज गया था
खाने को जब दौड़ लगाई
बची कुची साग - भाजी अपने हाथ आई
घर जब पहुचे , नया साल घर आ बैठा था
सूरते अपनी उतरी थी ,
और नया साल हम पर हँसता था
--- अमित ०३/०१/०८
6 comments:
This is excellent…..I recalled all the time of that day
Good one Amit.
Good one......Will never forget this new year.
bahot khoob janab.....
aapke shero shayri ke hunr se to hum hamesha se wakif hain.... par aaj bhi sharma ji apki utkrisht klakriti (master piece) woh hi hai jo aap ne meri or shekhar ki farmaish par likhi thei....
:-)
बढिया है बंधू, बहुत बढिया.
कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो आई.
पर जब दोस्त साथ में होते हैं तो failure पर failure, सब प्लान fail होतें जाएँ, तब भी बहुत मस्त मज़ा आता है!! हस्ते हस्ते ही वक्त का पता नहीं लगता था!! ना जाने किन यादों में पहुँचा दिया आपने..
आपने तो फिर भी घड़ी देख ली, समझदार हो आप.. साग भाजी ही बढिया है!!!!!
और बची खुची का तो मज़ा ही कुछ और है ;-)
देखना यह taste हमेशा याद रहेगा !
happy new year!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Good poem, arre yaar tum magazines mein likhana shuru kardo.
Good poetry...
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