Wednesday, November 23, 2011

कविता का नाम अंत में दिया है !!!

अनेक मनाते हम त्यौहार !

अलग सा मनता हर त्यौहार !!

एक अनोखा बस यह त्यौहार !

एक सा मनता बस यह त्यौहार !!

दिनों हफ़्तों नहीं, महीनों पहले उडती लहर !

आने को होता जब यह त्यौहार !!

सड़के सबसे पहले यह संदेसा लाती हैं !

चमक-दमक चेहरे पर उनके पहले आती हैं !!

पानी-बिजली भी थोडा झूमते नज़र आते है !

जब भी उनको देखो घर में नज़र आते हैं !!

अदब का हर तरफ मंज़र होता है !

दबंग और साधू में भेद कम नज़र होता है !!

जीवन भी कुछ और गति मान हो जाता है !

रुके हुए कामों का मार्ग, खुद-ब-खुद साफ़ हो जाता है !!

सज जाते है फिर वो सूने नुक्कड़- चोराहें !

महफ़िलो के अड्डे अब वो नुक्कड़- चोराहें !!

भ्रमण देव- देवियों का फिर आम होता है !

दर्शन तब उनका सुबह- शाम होता है !!

दुर्लभ वचनों को मांगने का समय यही होता है !

"तथास्तु", शब्द सब देव-देवी के मुख पर यही होता है !!

यकीन जानिये देश भक्ति का वातावरण चहूँ ओर होता है !

ऐसा सब होता है, जब "चुनावी दंगल" यहाँ शुरू होता है !!

खुश होने को हर भारतवासी के पास यही दिन होता है !

अफ़सोस यह कि "चुनावी दंगल" हर पाँच साल में होता है !!


--- अमित (२२ /११/ २०११ )