Sunday, October 31, 2010

शीर्षक अभी समझ नहीं आया !!! सुझावों का स्वागत है !!!

आज शाम मैं उदास था ,
करने को कुछ न मेरे पास था !
पूरे दिन तोडा था बिस्तर मैंने ,
एक पल को बिस्तर, न छोड़ा था मैं !
पड़े-पड़े दुख रहा था अंग-अंग मेरा ,
करने निकले सैर, कम्बखत पैर न उठा मेरा !
पास के एक बाग़ की फिर राह ली ,
पेड़ के नीचे पड़ी बैंच हमने थाम ली !
वहां देख बच्चों की उछल कूद ,
खलबली मेरी उदासी में मची !
करते देख कसरत बुजुर्गो को ,
शरम कुछ अपने हाल पर आई !
ठंडी हवा पेड़ों से छन-छन कर आ रही थी.,
मन से उदासी भी , अब दूर जा रही थी !
आलस अपनी भी, पतली गली निकल लिया,
फिर लिखने को कुछ, अपना भी मन किया !
खुश होते मन ने, भावनाए शब्दों में पिरो दी,
और छोड़ आलस हमे, पंक्तिया आपस में जोड़ दी !
दिन अपना इतना भी व्यर्थ न गया,
जाते जाते यह सिखला कर गया !
चलती दुनिया हर दिल हो भाती है ,
और गर ठहर जाए तो बहुत खीज़ आती है !
(शाम को पार्क में उदास बैठा था, अचानक ये पंक्तिया दिमाग में आ गई ) ...
--- अमित ३१ /१०/२०१०

Thursday, October 7, 2010

एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको...

एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
मैं ढून्ढ रहा हूँ, हर दम उसको
रूप की तुम्हारे की खूब तारीफ़ मैंने
आशिक के उस चोले से बहार आना है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
चर्चे खूब किये हसिनाओ की बेवफाई के
शब्दों से अपने वफा अब करनी है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
गुदगुदाया है बहुत यारो को अपने
होना संजीदा अब ज़रूरी है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
लिखा जाने क्या क्या मैंने
सार्थक सा कुछ अब लिखना है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
मैं ढून्ढ रहा हूँ, हर दम उसको
आज खाली गया तो क्या ,
कल न तो परसों, वो मिलेगी मुझको ...

--- अमित ०५/१०/२०१०