इसे साहस कहे या दुस्साहस
आधुनिकता कहे या बे-शर्मी ,
फैसला आप पैर छोड़ता हूँ
देखा जो इन आँखों से
किस्सा आप से वो कहता हूँ
करता था एक बस स्टेशन पर
श्री-मति जी का मैं इंतज़ार
माहौल बडा ही नीरस था
और बढती चहल कदमी से
खोता जा रहा धीरज था
निगाह हमारी आवारा पंछी सी
कहाँ एक जगह ठहरती हैं
इधर उधर घूम
साथ लगी बेंच पर पड़ी
अभी तक थी जो सुस्ती
वो अब अचरज बनी
बैठा बेंच परएक प्रेमी युगल था
फूटती दोनों से बडी प्रेम उमंग थी
गुजरने के लिए बीच
हवा को भी जगह तंग थी
देख कर उनके हाथों कि शरारत
हमको होती जा रही थी हरारत
जिस तरह वो थे एक दूजे में गम
देख कर उनको होते थे होश अपने गुम
उनकी देख येँ हरकत दिमाग अपना चल गई
जो देखी घटना, वो कविता बन सामने आ गई ...
--- अमित २२/११/०९