Friday, February 29, 2008

मित्र हमारे ...

हमारे एक मित्र है
आदतों से जरा विचित्र है
जरा शौकीन से है इनके मिजाज़
और सब से अलग है इनका अंदाज़
अक्ल का झोला तो है इनके पास
पर एक गाँठ है उस पर लगा हुआ
खत्म उसके हो जाने से डरते है
इस लिए जरा संभल कर खरचते है
अमूमन हमारे साथ ही विचरते हैं
और अपनी खुराफातो से चर्चा में रहते है
कौन जाने हम से डरते है या बडा दिल रहते है
जो हर दम हमारी खिचाई चुपचाप सहते है
हिन्दी बोलने का शौक बहुत है
पर जबान दगा कर जाती है
जब भी देखो, बेचारी फिसल जाती है
शब्द भी उनसे मजाक करते है
आगे पीछे हो, दिमाग खराब करते है
श्रीमान कब श्रीमती में बदले
जनाब ख़ुद भूल जाते है
इधर - उधर का अंतर रोज हम बताते है
कृष्णा के ये परम भक्त है
और अनुकम्पा हनुमान की पाते है
लाख करे ये लीला, लाख करे ये कोशिश
गोपियों को जरा कम ही भाते है
ज्ञान इनका अपरम-पार है
गोपी ने नाम भर से ही सारा पता बताते है
समाचार पत्र भी इन्ही की दया का पात्र है
अरे एक बात तो हम भी भूल गए
दुसरे शौक और भी अजीब है
घड़ी घड़ी अपनी जुल्फों को बनाते है
आप बस फोटो का नाम ले
अनायस हाथ जुल्फों में उलझ जाते है
यो तो हिन्दी से नही ठीक इनका व्यवहार है
पर अतिशोक्ति अलंकार से इन्हे बडा प्यार है
इनके आगे जहाज भी घडे में डूब जाते हैं
और ये तैर कर किनारे आ जाते हैं
शौक तो आख़िर शौक ठहरे,
जाने कैसे कैसे हो जाते है
पर जनाब दिल से है "हीरे "
तभी तो है हर दिल में ठहरे...

Friday, February 22, 2008

किसे पता ???

एक दिन मिले दो अजनबी
पास ज़रूर थी
कुछ- कुछ जाने पहचानो की भीड़ लगी
चंद पलों का ये साथ था
जीवन पर्यंत साथ रहने का शुरुआत था
क्या चंद पल पर्याप्त थे
किसे पता ???
कुछ दिन मेहमानों का मजमा लगा
खुशियाँ मनी , जश्न चला
और दो लोगो ने डरते-डरते
ढेरों उमांगो संग नवजीवन में प्रवेश किया
क्या होगा उन अरमानों का
किसे पता ???
सब अच्छा हो तो दिल खुश होता
कुछ लगे बुरा तो दिल रोता
दोनों चाहाते बस खुश रहना
पर क्या है वो जिससे सब ठीक रहता
किसे पता ???
--- अमित २५/०२/२००८

Tuesday, February 19, 2008

जो है अधिकार मेरा !

क्यों मांगू मैं
भीख सा
जो है अधिकार मेरा !
क्यों स्विकारू मैं
दया सा
आत्म सम्मान है मेरा !
क्यों समझते हो
स्वं को
सबका सर्वेसर्वा !
मैं जन्मा नही
जन्मी हूँ मैं
तो कोई
अपराध नही है
एक मानव हूँ मैं
और अधिकार है मेरा
पाना एक मानव का सम्मान !
--- अमित १९/०२/२००८


Thursday, February 14, 2008

पहला वैलेंटाइन डे ...

श्रीमती जी, अभी कुछ दिन हुए
ससुराल छोड़ , हमारे साथ आई
एअरपोर्ट उन्हें लेने जा
हमने भी पत्नी भक्ति दिखाई
यहाँ आ उनको लगा
नई आज़ादी उन्होंने पाई
जो लगते थे कभी कट गए
वो "पर" वापस निकल आए
दो दिन आराम करवा
उनको नए शहर की सैर कराई
देख कर खूबसूरती शहर की
वो खूब ही ह्र्षाई,और हमसे बोली
अब आसानी से घर नही जाऊँगी
चाहे जैसे रखो,
चुप-चाप आप के साथ रह जाऊँगी
हम भी खुश थे ,
वैसे भी अभी कहाँ अपने "घर" जाना था
श्रीमती जी नित नई फरमाइश ना करे
बस अपना इतना ही चाहना था
श्री मानो के चाहने से क्या होता है
परचम तो श्री मतियों का लहरा होता है
इसका आभास हमे कल हुआ
जब श्री मति जी ने पास आ प्यार से कहा
अजी कल का क्या प्रोग्राम है
हमने भी जरा लाड दिखाया और कहा
आप जे ओ बोले , बन्दा तो आप का गुलाम है
उन्होंने तव फरमाया , ठीक है
पहले तो डिस्को चलेंगे और फ़िर
रात का खाना बाहर करेंगे
अभी तक तो हम ठीक थे
ये सुन जरा घबरा गए
कल को ऐसा क्या "ख़ास " है
ये सवाल कर, आफत में आ गए
इस परवो जरा गरमा गई और
शेरनी सी धाड़ कर सामने आ गई
शादी होते ही सब भूल गए
प्यार के शौक चार दिन में धुल गए
कल "वैलेंटाइन डे" है , वो भी पहला
हम साथ में मनायंगे ,
जहाँ दिल चहयेगा , वहाँ जायेंगे
आवाज़ के रुख से समय को हम भाप गए
हमतो मजाक कर रहे थे , कह बात ताल गए
समझ गए थे , "संत वैलेंटाइन" तो गए स्वर्ग सिधार
और हम श्री मानो को छोड़ गए ये खेर्चे का त्यौहार ...
---- अमित १४/०२/२००८