सुबह सुबह
अलसाई आंखों से जो देखा
अलसाई आंखों से जो देखा
बगीचे में,
पोधों की पत्तियों पर
पड़ी ताज़ी ओस की बूँद सा
दिखाई दिया बचपन
ओस सा ताज़ा और पाक़
ऐसा ही होता है बचपन
ओस सा ताज़ा और पाक़
ऐसा ही होता है बचपन
नन्ही नन्ही सी बाहें फैलाये
छोटे से दिल मे ढेर सा प्यार लिए
आंखों में दुलार की आशा लिए
अपनी तुतलाती बोली से
मेरी बाहों में आने को
मुझे, बुलाता बचपन
मुझे, बुलाता बचपन
मुझसे कुछ न माँगता
जरा है नादान अभी
बस थामे मेरी ऊँगली
चुप चाप साथ मेरे चलना चाहता, बचपन
पीछे मुड जब देखा, तो याद आया
पीछे मुड जब देखा, तो याद आया
जाने कहाँ अकेला छोड़ आया,
मैं अपना बचपन ...
--- अमित २४/१२/०७