Monday, June 30, 2008

हालात ...

देता है हर कोई
दुहाई, अपने हालातो की
अगर हालात हुए कुछ और होते
तो अपना ये मुकाम न होता
जहाँ आज गिनते हो तुम औरों को
वही कहीं अपना भी नाम होता
ऐसा नही के हम काबिल न थे
बस, बदले जमाने से वाकिफ नही थे
दावं - पेच इसके हमें समझ नही आते थे
और साथी हमारे आगे निकल जाते थे
सच्ची लगन मगर कहाँ छुप पाती है
रात कितनी भी घनी हो
सुबह से हार ही जाती है
तुम रहो साथ मेरे ,
करो मेरा विश्वास
और कोई नही , ख़ुद बदलूँगा
मैं अपने हालात
मैं करता नही वादा
कि तारे मैं तोड़ कर लाऊँगा
साथ रहो तुम मेरे
आकाश तक तुम को ले जाऊं मैं ...
--- अमित ३०/०६/०८

कहते है वो ...

कहते है वो

हम से भी हो परदा

तो क्या हुआ

जो हम है एक - दूजे के

शर्म तो हमारा गहना है

आप कुछ कहे

हमें तो परदा-नशीं ही रहना है

ना रहे परदे में तो

हया से आँखे झुक जाती है

हाथों में लगी हिना की लाली

रुखसारों पे आ जाती है

सर्द सा जिस्म होने लगता है

जान सी जैसे, निकली जाती है

आप तो बडे बे-शर्म है

शर्म आप को कहाँ आती है

मिलती है आप से नज़रे

और जान हमारी जाती है

हलकी सी एक छुहन

सिरहन एक जिस्म में दौड़ जाती है

अभी रहो जरा दूर ही हम से

महोबत की ये खुमारी

हम से न सही जाती है ...

---अमित ३०/०६/०८