Monday, March 24, 2008

बडा शिकार ...

बहुत हुआ छोटा छोटा शिकार
चलो मारे एक बडा हाथ अब
ये मान्यवर,
साधारण श्रेणी से दूर
प्राणियों में गिने जाते है
छोटों की तो बात करे क्या
बडे - बडे इन से घबराते है
नीचे जो है इनके
बेचारे बस मिमियाते है
और अधिकारी जी देख इनको
कोने से सरक जाते है
कब दफ्तर को आना है
कब दफ्तर से जाना है
अपने मन का सौदा है
जब मन में आए आना है
जब मन में आए आ जाना है
काम होता है किस चिडिया का नाम
ये सवाल बहुत ही पुराना है
सुविधाओं को कहाँ इन्हे बरतना होता है
कैसे हो उसका हनन
जोर सारा वहाँ लगा होता है
और उस पर कहना ये
जो भी हो अपना क्या कुछ जाता है
कहाँ से कितना पैसा आए
किसने कितना पैसा पाया
यही सोच सोच कर दिन जाता है
जैसी देह विकराल है
बुद्धि भी वैसी पाई है
अक्ल के पीछे हमेशा लाठी होती है
पर ना जाने
व्यापारी बुद्धि कहाँ से इतनी आई है
कब किस को किसे लडवा दिया
कब किस की पीठ में छुर्रा लगा दिया
पता लगा मुश्किल है
और काम जो ये कर गया
समझो इनकी तिकड़म से बच गया
दूर से ही इनको करो प्रणाम
बच के इनसे रहने का रास्ता सब से आसान ...
--- अमित २०/०३/०८

Tuesday, March 11, 2008

आई एक मेल ...

आज सुबह जब ऑफिस पहुंचे
देखा एक गुड मोर्निंग का मेल आया
यों तो , ये हमारे नये मित्र है
पर हमे अचरज ये हुआ
यकायक इन्हे हमारा ख्याल क्यों आया
उत्सुकतावश हमे मेल जा खोला
मेल देख हुई बड़ी हैरानी
कुछ कुशल क्षेम न पूछी थी
बस एक वेब साइट का लिंक आया था
हम ठहरे , थोड़े शौकीन
सोचा किसी कविता का पता बताया होगा
पहुंचे जब हम वेब साइट
देख उसे सर हमारा चकराया
पॉप -उप होते विज्ञापनों में
बस पैसा-पैसा-पैसा छाया था
ये कुछ और नही
मनी कंट्रोल का लिंक आया था
हमारे ये मित्र भी अजीब है
इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी के हो कर
शेयर बाज़ार के करीब है
बाज़ार की तेज़ी - मंदी
इनकी नब्ज़ में झलकती है
जब भी मिल जाओ इनसे
बस शेयर की की बात चलती है
ये भी हम से अनजान है
शेयर की भाषा न हमे आती है
कविता करना बस एक शौक है
ये तो इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी है
जिस से हमारी रोटी चल जाती है ...
--- अमित ११/०३/२००८

Friday, March 7, 2008

इन से भी मिलते है ...

चलिए साब
चलते-चलते आप से भी मिलते है
बाकी सब की तरह
आप की भी अपनी ढपली अपना राग है
मगर, आप का रिकार्ड जरा ख़राब है
बजता हमेशा बस एक ही राग है
यों तो शान्ति है इनको प्यारी
मगर तुनक मिजाजी ने की गड़बड़ सारी
बात जरा सी भी नाक पर आ जाती
और बेचारी नाक हर जगह अड़ जाती
नाक तो फिर नाक है
सारी दुनिया इसके आगे हारी है
फिर अखाडे का क्या
कहीं भी जम जाता है
खाने की मेज़ वो जगह है
जहाँ आप फुल फॉर्म में पाये जाते है
इसे कुछ ग़लत न समझे
यों तो सामान्य लोगो सा ही खाते है
मगर भावनाओं में बह
भीड़ पर जरा भड़क जाते है
उठाई अगर किसी ने एक ऊँगली
पांचो उँगलियों से ज़बाब आपने दिया
बात हुई जब भी अपने "देस" की
परचम "देस" का अपने उपर किया
चाहे हो सही , चाहे हो ग़लत
अपने को ही उपर किया ...
--- अमित ०७/०३/०८

Tuesday, March 4, 2008

ऐसे ही है ये ...

सुबह सुबह उठना
नहा-धो तैयार हो
खुली आँख से सपने बुनना
बस यही काम है इनका
ऑफिस में सबसे पहले
कम्युनिकेटर ही ओपन होता है
कल कहाँ बात खत्म हुई थी
दीमाग पर यह ज़ोर होता है इनका
और क्यों न हो
रोज नया पाठ जो शुरू करना होता है
सुबह सुबह इनके दर्शन होते है
दोपहर से शाम कहाँ गुजरी
कहाँ किसे पता होता है
शाम को जब ये लौटे
फिर कम्युनिकेटर का ही ख्याल होता है
कुछ इधर घूम , कुछ उधर घूम
रात को घर जब ये पहुंचे
फ़ोन बेचार कान पर लगा होता है
कहीं डाउन न हो जाए बैट्री
इसलिए फ़ोन चार्जर पर लगा होता है
इनके साथ जो जाग सके
इतना साहस हमसे कहाँ होता है
लाख इन्हे हम समझाये
लाख इन्हे हम धमकाए
जबान पर तव इनकी, ताला होता है
"कोई भी " नाम इनका पुकारे
नाम के आगे "मीठा" लगा होता है ...
--- अमित ०४/०३/२००८

Sunday, March 2, 2008

नबाबी ठाठ...

ठाठो में है लाखो ठाठ

शौको में है लाखो शौक

अदाओं में है लाखों अदा

देर से आने की अदा

सबसे जुदा है ये अदा

और हो भी क्यों न

नबाबी है इसका अंदाज़

और लगता जैसे

बढ़ गया अपना रुबाब

बोला दोस्तों को साथ चलेंगे

पहुंचे जब सब

देखा नवाब सोये पडे है

किया वादा की नाश्ता साथ करेंगे

और दिखाई रात को दिए

जब उन्होंने हमे कहा

बस १० मिनट रुको

हम रुके तो ज़रूर

और घड़ी के घूमते काटे गिने

करते कोशिश है बहुत

करे खिचाई औरो को

और हमेशा ही उलटी पड़ी

देख उनकी झेप

चढती सबको मस्ती बडी

प्यारे ये हम सभी के है

आदत से मगर सब घबराते है

चाहे सब करे कितनी भी मिन्नत

"नबाब साब" अपने समय से ही आते है ...

--- अमित २/०३/०८